Sunday, January 6, 2013


17  KAUTILYA’S   ‘ARTHASHAASTRA’


MadanMohan Tarun

Safety

रक्षितो राजा राज्यं रक्षत्यासन्नेभ्यः भरेभ्यश्च। पूर्व दारेभ्य; पुत्रेभ्यश्च।दाररक्षणं निशान्तप्रणिधौ वक्ष्यामः।पुत्ररक्ष्णम्जन्मप्रभृति राजपुत्रान् रक्षेत्।कर्कटकसधर्माणो जनकभक्षा राजपुत्राः।

जो राजा अपने पास रहनेवाले बन्धुओं, एवम स्वजनों से सुरक्षित रहता है ,वही अपने राज्य की ठीक प्रकार से रक्षा कर सकता है। सर्वप्रथम तो उसे अपनी पत्नी और अपने पुत्र से ही रक्षा का उपाय करना चाहिए। स्त्री से रक्षा का उपाय बाद में कहा जाएगा।यहाँ पुत्र से रक्षा का उपाय कहते हैं। राजा को राज पुत्रों पर जन्मकाल से ही सतर्कतापूर्वक ध्यान रखना चाहिए। क्योकि उनका स्वभाव कर्कट जैसा होता है जो अवसर मिलने पर अपने पिता को ही खा जाते हैं।

A king who is safe from his own closer relatives , can save his empire in a better way. A king must take precaution in saving himself even from his wife and son. Ways of protection from wife will be said later, first I am suggesting ways of protection from sons. A king must keep alert from his sons ,right from the beginning. They are like crabs who eat-up  their father as and when they get chance.
(From ‘Kautilya’s ‘ARTHASHAASTRA’ by MadanMohan Tarun)

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