Monday, February 1, 2016

डिफेंस अकादमी , खडकवासला  
               भारतीय  भू , नौ एवं वायुसेना के संकल्पों के प्रति प्रतिबध्द
              
                                                       मदनमोहन तरुण



पूना से अकादमी की यात्रा

पूना स्टेशन पर गाड़ी जब  रुकी तो सुबह के सात बज रहे थे।जून का महीना था। आकाश पर सॉवले - सॉवले बादल सम्भ्रांत नागरिकों की भॉति चहलकदमी कर रहे थे। उत्तर की गर्मी की लू के चाबुकों से छिले मन प्राण को बड़ी राहत मिली।मेरे पास एक छोटी सी अटैची थी । इतनी भारी नहीं कि उठा न सकूँ सो , मैं भी बादलों की तरह चहलकदमी करता अटैची उठाए बाहर चला आया।अब समस्या यह थी कि नेशनल डिफेंस अकादमी कैसे पहुँचा जाए।बहुत कठिनाई नहीं हुई। पहले ही सज्जन से पूछा तो उन्होंने विशेषज्ञों की तरह बताया कि एन. डी..  यहॉं से चौबीस किलोमीटर की दूरी पर है और यहॉ से पाषाण मार्ग से होते हुए कुछ घंटों के अन्तराल पर बसें जाती रहती हैं।और , कदाचित यहॉं से अभी कोई बस न हो तो आप डक्कन जिमखाना से बस पकड़ सकते हैं जो अकादमी के मुख्यद्वार कोंडवेगेट से  होती हुई हर घंटे जाती है। मैंने सोचा पहले स्टेशन से ही बस क्यों न लेलूँ और उन्हें धन्यवाद देता मैं बसस्टैंड पहुँचा, परन्तु बस कुछ ही देर पहले जा चुकी थी और अब नौ बजे के पहले यहॉं से दूसरी कोई और बस न थी। मैं जरा भी समय बर्बाद किये बिना आटो लेकर डक्कन जिमखाना पहुँच गया जहॉं से एक बस जाने ही वाली थी।एक चुस्त दुरुस्त वेशभूषा में बैठे सज्जन के पास मुझे जगह मिल गयी। तनिक देर औपचारिक चुप्पी के बाद मैंने उनसे पूछा यह बस एन. डी..  के भीतर तक जाएगी न ?’ उन्होंने संक्षेप में कहा – ‘हॉं।अबतक बस चल चुकी थी।तनिक देर के बाद उन्होंने चुप्पी तोड़ते हुए पूछा – ‘ आप एन. डी.. देखने जारहे हैं क्या ?’ मैंने संक्षेप में उन्हें सकारात्मक उत्तर दिया। उन्होंने अब तनिक सहृदयता से बातें करते हुए कहा  एन. डी.. मैं भी जारहा हूँ। मैं वहीं काम करता हूँ और रहता भी हूँ।

एन. डी.. की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

उन्होंने बताया कि 15 दिसम्बर 1948 में यह अकादमी देहरादून के क्लेमेंट टाउन के वीरान प्रिजनर्स आफ वार बैरक में कर्नल कामता प्रसाद जी के नेतृत्व में स्थापित हुई थी।तब इसका नाम ज्वाइंट सर्विस विंग था। यों तो कई प्रदेशों की सरकारों ने अपने अपने प्रदेशों में इसकी स्थापना की इच्छा व्यक्त की थी ,परन्तु सेना की विशेषज्ञ समिति को एक ऐसे स्थान की खोज थी जहॉ आर्मी ,नौ सेना तथा वायुसेवा , तीनो ही सेनाओं के भावी अधिकारियो के संयुत प्रशिक्षण की सुविधा हो।इसके लिए पूना को उपयुक्त पाया गया।तब बम्बई प्रदेश के मुख्यमंत्री मुरारजी भाई देसाई थे , जिन्होंने इस अकादमी के निर्माण के लिए सरकार की ओर से 8300 एकड़ जमीन प्रदान की।1 जनवरी 1950 को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसका शिलान्यास करते हुए अपने मर्मस्पर्शी भाषण में इसे निर्माणोन्मुख स्मारककहा था।  1 जनवरी 1950 को इस अकादमी का नामकरण नेशनल डिफेंस अकादमीकिया गया जो अपने संक्षिप्त नाम एन. डी..   के रूप में विश्वविख्यात है। 16 जनवरी 1955 को दिन में तीन बजे मोरारजी भाई देसाई ने इसके समारम्भ की घोषणा की।मेजर जेनरल इनायत हबीबुल्ला  इसके प्रथम कमांडेंट थे।

अबतक बस कोंढवा गेट पहुँच चुकी थी और एक सैनिक के व्दारा उसकी सुरक्षा जॉच हो रही थी। बस में सवार जिन लोगों ने अपने पास दिखाए वे बैठे रहे ,परन्तु जो पहली बार यहॉ बाहर से आरहे थे ,उन्हें नीचे उतरकर एक रजिस्टर में अपना नाम और आने का उद्देश्य लिखना पड़ा। यत्रियों के फिर से सवार होते ही बस एक बार फिर चल पड़ी।

सुदान ब्लाक

अब बस  अकादमी के परिसर के भीतर चल रही थी।कोंढवागेट के भीतर प्रवेश करते ही करीब एक किलोमीटर की दूरी से ही एक विशाल अशोकस्तम्भ दिखाई पड़ा जिसके पीछे से एक कत्थई रंग का विशाल गगनचुम्बी गुम्बदाकार भवन दिखाई दे रहा था।।बस जैसे जैसे आगे बढ़ी , वैसे उसका विशाल आकार अपनी भव्यता और गरिमा के साथ उभरने लगा। यह सुदान ब्लाक है। यह अकादमी का केन्द्रीय प्रशासकीय भवन है। यहीं अकादमी के समादेशक एवं अन्य उच्चाधिकारियों के कार्यालय हैं। इस भवन में 100 से अधिक कमरे हैं, जिनमें से कई में केडेटों को हिन्दी के साथ कई विदेशी भाषाओं , इतिहास तथा गणित का अध्यापन किया जाता है।अबतक बस सुदान ब्लाक के पास आ चुकी थी। ड्राइवर से अनुरोध कर हम वहीं उतर गये। सामने के एक पुष्पोद्यान को पार करते हुए अब हम सुदान ब्लॉक  की विशाल सीढ़ियों के पास खड़े थे जिसकी उॅचाई पर यह दो मंजिला, भवन खड़ा था। प्रथम दर्शन में यह मजबूती और  असाधारण गरिमा का बोध करा रहा था।सीढ़ियों से ऊपर चढ़ने पर इसका दूर तक फैला मेहरावदार प्रशस्त बरामदा मोहक तो था ही उसके चारों ओर शांति थी।अब बरामदे से हम उसके गुम्बद वाले अन्तः प्रांगण   में थे।उसकी सुन्दरता और भव्यता देख कर ऑखें खुली की खुली रह गयी । जोधपुरी चट्टानों और इटेलियन मार्वल से निर्मित यह स्थल चारो ओर से माने दर्पण - सा चमक रहा था।इस भवन पर मुगल स्थापत्य की छाप है।

हम अबतक इस भवन की शोभा निहार ही रहे थे कि साइरन की जोरदार आवाज हुई और उसके साथ ही किसी योगी से शांत इस भवन की निस्तब्धता टूट गयी और बरामदे से पंक्तिबध्द गुजरते सैंकड़ों केडेटों की बूटों की आवाज से पूरा परिसर गूँ उठा। सड़कों पर सैंकड़ों सइकिलें दौड़ पड़ी जिनपर केडेट गणवेश में सवार थे।इस पूरी गतिविधि के पश्चात साइरन की एक और आवाज हुई और सारा कोलाहल मानो फिर से निविड़ शांति में परिवर्तित हो गया। केडेट अब अपनी अध्ययन कक्षाओं में जा चुके थे।अब फिर से अकादमी ऐसी लगने लगी थी मानो यहॉं कोई रहता ही नहीं। मैंने गौर किया कि करीब अठारह सौ कडेटों और अन्य सैंकड़ों लोगों की निरन्तर व्यस्त गतिविधियों के बावजूद इसका चप्पा चप्पा इतना साफ था कि उसपर गिरी सुई भी आसानी से ढूँढ़ी जा सकती थी।

सुदान ब्लाक के नमकरण का भी एक इतिहास है।व्दितीय विश्वयुथ्द के समय भारतीय सेना को विश्व के अनेक देशों में शांति स्थापन के लिए नियुक्त किया गया था।भरतीय सेना ने अपना दायित्व सराहनीय रूप में निभाया।उन दिनों , 1941 में , लॉर्ड लिनलिथगो भारत के वायसराय थे।सुदान सरकार ने उत्तर अफ्रीका में भारतीय सेना के वीरतापूर्ण कार्यों के सम्मान में एक उपयुक्त युध्द स्मारक के निर्माण के लिए एक सौ हजार डालर दिये थे , जिसका उपयोग इस महान ब्लॉक के निर्माण के लिए किया गया। सुडान सरकार के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए इस ब्लाक का नाम सुदान ब्लाकरखा गया।

अकादमी के अन्य प्रमुख भवन

सुदान ब्लाक  के  दाहिनी ओर उसके पुस्तकालय का भवन है जिसे व्यास लाइब्रेरी कहा जाता है। इस पुस्तकालय में विविध विषयों पर 75 हजार से अधिक पुस्तकें हैं। यहॉ देश  विदेश की सैंतीस पत्र - पत्रिकाएँ मॅगवाई जाती हैं।इस दो मंजिला भव्य भवन के ऊपर के एक कक्ष में कई कम्प्यूटर हैं जहॉं केडेट इंटरनेट के व्दारा भी अपने विषय से सम्बध्द जनकारी प्राप्त कर सकते हैं ।पूरा पुस्तकालय कम्प्यूटरीकृत है।यहॉं लोगों के आराम से बैठ कर पुस्तकें पढ़ने की सुविधा है।

सुदानब्लाक के बाईं ओर एसेम्बली हाल है जो अकादमी के प्रथम समादेशक मेजरजेनरल इनायत हबीबुल्ला के नाम पर हबीबुल्ला हॉल के नाम से जाना जाता है।सत्र के समारंभ पर समादेशक यहीं केडेटों एवं अधिकारियों को सम्बोधित करते हैं।यह सही अर्थों में अकादमी का संस्कृर्ति  सदन है।हबीबुल्ला भवन दो मंजिला है।यहॉं सैकड़ों लोगों के एक साथ कुर्सियों पर बैठने की आरामदेह व्यवस्था है।सामने ध्वनि, चित्रप्रक्षेपण की सुविधाओं से सम्पन्न विशाल मंच है , जहॉ से न जाने देश विदेश के कितने ही सेना नायको , राष्ट्रों के प्रधानों , विव्दानों के संबोधन गूँज चुके हैं और भविष्य में भी गूँजते रहेंगे।इनके साथ ही इस मंच पर न जाने कितने नाटक , संगीतादि के कार्यक्रम प्रस्तुत होते रहे हैं।अकादमी का प्रशिक्षण समाप्त करने पर यहीं दीक्षांत समारोह होते हैं और यहीं  सफल केडेटों को समादेशक के व्दारा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से प्राप्त स्नातक कला , विज्ञान या कम्प्यूटर साइंस की डिग्रियॉं प्रदान की जाती है। इस भवन में केडेटों,  अधिकारियों एवं कर्मचारियों को हिन्दी अंग्रेजी की फिल्में भी दिखाई जाती हैं।

इसी भवन के एक भाग में अकादमी का सुसम्पन्न संग्रहालय है, जिसमें अकादमी के इतिहास की दुर्लभ धरोहरों के साथ देश विदेश से प्राप्त उपहार एवं सैनिक जीवन की मूल्यवान वस्तुओं  का संग्रह है।

इस भवन के पीछे की ओर की सड़क के उस पार समाजविज्ञान भवन है जिसे अब मनोज शर्मा ब्लॉक कहा जाता है।यहॉं कम्प्यूटर साईंस , भूगोल , राजनीति शास्त्र एवं अर्थशास्त्र का अध्यापन किया जाता है।पासिंग आउट के दिनों में इस भवन के प्रवेशव्दार के के भीतर के बरामदे में केडेटों व्दारा निर्मित कलात्मक चित्रों , मानव जीवन एवं वन्य जीवन के विविध पक्षों से सम्बध्द उनकी फोटोग्राफी कला का भी प्रदर्शन किया जाता है।इसके साथ ही इस अवसर पर उनकी सूझबूझ से निर्मित इलेक्टा्रानिक एवं अन्य सामानों को भी प्रदर्शित किया जाता है जो उनके व्यक्तित्व के सर्वांगीन विकास का दर्पण कहा जा सकता है ।इसी अवसर पर उनक पार्वतारोहण का भी एक पक्ष प्रस्तुत किया जाता है।

इस भवन को देखने पश्चात एक बार पुनः हम इस सड़क के दूसरी ओर अवस्थित विज्ञान भवन की ओर लौट चलते हैं।
यह अकादमी का विज्ञान भवन है जिसे अब राकेश शर्मा ब्लाक नाम दिया गया है। यहॉ विॅज्ञान के विषयों में भौतिकी तथा रसायनशास्त्र का अध्यापन किया जाता है। इस भवन के मस्तूल पर एक शक्तिशाली दूरवीन है जिससे खगोलीय गति विधियों का अध्ययन किया जाता है।दूर दूर तक गूंजनेवाली इस भवन पर जड़ी विशाल घड़ी की आवाज अकादमी की दिनचर्या का संचालन करती है ।

विज्ञान भवन के ठीक सामने अकादमी का परेडग्राउण्ड है ।यहीं केडेट परेड के माध्यम से अनुशासन , दृढ़ता गतिगत तालमेल आदि का प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं ताथा छठे सत्र के समापन पर अकादमी से विदाई के समय वे  देश –  विदेश के हजारों मेहमानों के सामने अपनी दक्षता का प्रदर्शन करते हुए मानो इस बात की घोषणा करते हैं कि देश की रक्षा के निमित्त अब हम प्रशिक्षण की अगली मंजिल की यात्रा के लिए पूरी तरह तैयार हैं।

परेड ग्राऊंड से कुछ ही दूर आगे बढ़ने पर ऑफिसर्स मेस दिखाई देता है।इसके सामने के भाग में ओलेम्पिक स्तर का स्वीमिंग पूल है जहॉं केडेटों को तैराकी का प्रशिक्षणा दिया जाता है।इस मेस के पार्श्व में विशाल स्टेडियम है जहॉ समय समय पर क्रिकेट खेले जाते हैं तथा प्रशिक्षण के अन्त में केडेट आमंत्रित मेहमानो की उपस्थिति में अपने साहसिक करतबों का प्रदर्शन करते हैं।

अब हम यहॉं से सीधे सड़क से चलते हुए पश्चिमोत्तर दिशा में बढ़ रहे हैं। आकाश पर बादल गहराने लगे है। सड़क के दोनो ओर खड़े छतनार वृक्षों की शोभा और भी बढ़ गयी है।हल्की दूर तक चढ़ाई है। यहॉं से एक ओर गोल्फकोर्स जाने का रास्ता है , जहॉ केडेट अपनी रुचि के अनुसार गोल्फ का प्रशिक्षण प्राप्त करते है। सड़क के एक ओर अधिकारियों के मकान हैं जिनके आगे की हेज खूब हरी है और उसमें अनेकों प्रकार के फूल - पौधे लगे हैं।यहीं एक ओर डेपुटी कमंडेंट का बंगला है। आगे चल कर कमांडेंट का भव्य निवास है। इन सारे स्थानों पर प्रवेश पूरी तरह प्रतिबन्धित है।यह भवन सड़क से काफी अन्दर की ओर है। यहॉ आने पर लगता है हम किसी नये लोक में पहुँच गये हैं।इस भवन के आगे आकाश से प्रतियागिता में ऊँचाई की ओर बढ़ते मोहक वृक्षों की पंक्ति है। नीचे बहती मूथा नदी की बॉंकी अदाओं का दृश्य इसे और भी मोहक बना देता है। प्रशिक्षण के अन्त में कमांडेंट की ओर से यहॉ विभिन्न क्षेत्रों में उच्चस्थान पाने वाले केडेटों को नाश्ते पर आमंत्रित किया जाता है जिसमें अधिकारी भी  सपत्नीक सम्मिलित होते हैं।समय समय पर यहॉं विशिष्ट अतिथियों को भी कमंडांट की ओर से आमंत्रित किया जाता है।


इस भवन से कुछ ही दूरी पर अकादमी का भव्य गेस्ट हाउस है, जिस पर प्रकृति की अपार कृपा है।अकादमी का पूरा परिसर जैसे प्रकृति का लीलास्थल है।यह विभिन्न वन्य जन्तुओं , पक्षियों , फूर्लों   पौधों से आपूरित है। अब हम पीकाक वे पहुँच गये हैं । यहॉ मूथा नदी को फैला कर एक झील का रूप देदिया गया है।यहॉ नेवी के केडेटों को नौकाचालन का प्रशिक्षण दिया जाता है।

केडेटमेस और स्क्वॉड्रन

सुदान ब्लाक के पास ही नेवल स्कूल है । यहॉ से आगे बढ़ते ही विशाल और भव्य केडेट मेस है।इसका किचेन स्वचालित एवं आधुनिकतम सुविधाओं से सम्पन्न है।यह केडेटों के दैनिक भोजन का स्थान तो है ही पासिंग आउट परेड के समय इसमें हजारों आमंत्रित मेहमान कुर्सियों पर बैठ कर फौजी बैंड की आवाज के साथ अनेकों सज्जित बेटरों व्दारा परोसा उच्चस्तरीय भोजन करते हुए केडेटों के सफल परीक्षण की समाप्ति की खुशी में शामिल होते हैं।
पासिंग आउट के अन्य समारोह में इसकी लकड़ी के चमचमाते  फ्लोर का उपयोग उत्साहपूर्ण बालडांस के लिए किाया जाता है।इसी अवसर पर मिस अकादमी का भी चुनाव होता है।

इस मेस के दूसरी ओर केडेटों के निवासस्थल हैं जिन्हें स्क्वाड्रन कहा जाता है ।ये निवास एक बटालियन के अन्तर्गत चार चार स्क्वॉड्रन में विभाजित हैं । हर केडेट को अपनी बटालियन और स्क्वाड्रन पर गर्व होता है। वह प्रतियोगिताओं में उन्हें आगे रखने में र्जी  जान लगा देता है।ये केडेर्ट  आवासगृह सेना के उच्चाधिकारियों व्दारा नियंत्रित रहते हैं। यहॉं केडेट एक परिवार की तरह रहना सीखता है। सीनियर केडेट जूनियर केडेट की पूरी तरह देखरेख करते हैं।

स्क्वॉड्रन से आगे गोलमार्केट है जहॉ दैनिक जीवन के लिए आवश्यक सामग्री मिलती है।यह अकादमी की कैंटीन व्यवस्था से अलग व्यव्स्था है , जहॉ अकादमी में रहनेवाला कोई भी व्यक्ति खरीदारी कर सकता है।

अकादमी में केडेट का प्रवेश


अकादमी के प्रशिक्षण के लिए उसकी चार इकाइयॉ उत्तरदायी हैं

अकादमिक प्रशिक्षण के लिए  शिक्षा विभाग उत्तरदायी है जो एक प्रिंसिपल के अधीन कार्य करता है। अकादमिक अधिकारी संघीय लोकसेवा आयोग से चुने जाते हैं।प्रशिक्षण में सैनिक शिक्षा विभाग के भी अधिकारी होते हैं।
 आर्मी ट्रेनिंग टीम , नेवल तथा एयर फोर्स  की टीमें अपने अपने दायित्वों का पालन कर भारत की सुरक्षा के प्रति नित निरन्तर प्रतिबध्द सेना के स्तर को जरा भी नीचे नहीं आने देतीं।
अकादमी के प्रथम सत्र में देश के विविध भागों, जातियों , धर्मों , आस्थाओं एवं बहुविध नागरिक पृष्ठभूमियों से फूल से कोमल प्रशिक्षणार्थी प्रवेश पाते हैं , परन्तु अकादमी के तीन वर्षों का कठिन और कठोर अनुशासनबध्द प्रशिक्षण उन्हें शारीरिक रूप से प्रचण्ड ,मानसिक रूप से अद्यतन विषयों की जानकारी से सम्पन्न ,निर्भीक और जीवन के उच्चतम मूल्यों के प्रति निष्ठावान बना कर राष्ट्र की सेवा के अगले चरण की तैयारी के सर्वथा योग्य बना कर प्रस्तुत करता है।केडेट अकादमी में घुड़सवारी, ग्लाइडिंग , नौकाचालन , तैराकी , क्रिकेट , फुटबाल, बालीबाल , टेनिस , गोल्फ , शस्त्रचालन , विज्ञान के नये प्रयोग , आदि के अलावा चित्रकारी , नाटक , पाश्चात्य और भारतीय नृत्य , वाद - विवाद , पशु -पक्षी अध्ययन आदि अनेकानेक में से अपनी रुचि के विषयों में भी प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं तथा  अकादमी के बाहर आयोजित प्रतियोगिताओं में भी भाग लेते हैं।

अकादमी के प्रशिक्षण के स्थान एक दूसरे से दूर दूर हैं अतः वहॉं समय पर पहुँचने के लिए केडेटों को सायकिल दी जाती है।केडेट हर जगह कदमताल मिलाकर चलते हैं।

एक एक केडेट के विकास की गति, उसकी निजी समस्या , परीशानी, किसी विषय में अतिरिक्त सहायता आदि पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान दिया जाता है। कक्षाओं के भीतर भी शिक्षक हर केडेट की समस्या का समाधान करते हैं। अगर कोई केडेट किसी विषय में कमजोर हो तो उसके लिए अतिरिक्त प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाती है।
स्मरण कुटीर अकादमी का महत्वपूर्ण स्थान है , जहॉं केडेट मातृभूमि के प्रति अपने प्राणोत्सर्ग करने वाले भारत के सेनानियों के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करते हुए यह प्रतिज्ञा करते हैं कि यदि आवश्यकता हुई तो वे अपना उच्चतम बलिदान देने में भी नहीं हिचकिचाएँगे।यह कार्यक्रम अकादमी में भव्य समारोह के साथ सम्पन्न होता है।


अकादमी देश के उन युवाओं का आह्वान करती है जो भारतीय सेना की महान एवं गौरवपूर्ण सेवा में सम्मिलित होना चाहते हैं।