Sunday, September 3, 2017

अग्नि

ऋगवेद से 9 मरुतगण हे नेतृत्वकर्ता! आप सब कौन हैं? आपके अश्व कहाँ हैं? उनकी लगाम कहाँ है? उनकी पीठ पर जीन कहाँ है? उनके नथनो में डाली जानेवाली रस्सी कहाँ है? मरुतगण अनेक मार्गों से गमन करते हैं। जो सामने से गमन करते हैं वे  'आपथय:' हैं। जो सभी मार्गों से गमन करते हैं, वे ' विपथय:'हैं। जो गुहा मार्ग से गमन करते हैं वे' अंत:पथा:' हैं। जो अनुकूल मार्ग से गमन करते हैं वे ,अनु पथा: के नाम से विख्यात हैं। वे कभी अग्रणी होकर, कभी सहयोगी होकर, कभी दूर से संसार को धारण करते हैं। इन मरुदगणों में न कोई ज्येष्ठ है, न कनिष्ठ। उनके पिता रुद्र और पृथ्वी मात्रृ स्वरूपा हैं। वे द्युलोक के शीर्ष, मध्य एवं अधोभाग में स्थित रहते हैं। हे रुद्रपुत्र मरुद्गण! आप बिन्दुचित्रित मृग - अश्वों से जब दौड़ लगाते हैं, तब तब आपके भय से वन, मेघ और पृथ्वी सब कम्पायमान हो जाते हैं। आपके भीषण गर्जन से पर्वत काँप उठते हैं। द्युलोक शिखर काँप उठता है। हे मरुतगण! आप जिस पर प्रसन्न होते हैं, उसे कौन नहीं जानता! हे मरुतगण!आप जिस पर अप्रसन्न होते हैं, उसे कौन नहीं जानता! हे ऋषिगण! विद्युतरूपी आयुधों से दीप्तिमान , महान, क्रांतदर्शी, महत मेधासम्पन्न मरुतों को हर्षित करनेवाली स्तुतियों से उनका आवाहन, अभिवादन करें। मदनमोहन तरुण

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