Sunday, September 3, 2017

द्यावापृथिवी

ऋगवेद से 16 द्यावा-पृथिवी उत्तम पंखोंवाला पक्षी सूर्य दिव्यलोक के मध्य में स्थित है।किंतु मनुष्य जलरूपी रात्रि के गहन अंधकार में तैरता हुआ ऊबडूब हो रहा है। आप उसे प्रकाश प्रदान करें।भेड़ियों से उसकी रक्षा करें।ज्ञान उसे भयमुक्त करे। नदियाँ ऋतुओं के अनुकूल चलने को प्रेरित करती हैं।सूर्यदेव सत्य के प्रकाशक हैं। हे अग्निदेव! देवताओं के साथ आपकी घनिष्ठता सर्वविदित है।आप ज्ञानसम्पन्न मनुष्यों की ही भाँति हमारे यज्ञ में पधार कर देवों का आवाहन करें। मंत्ररूपी स्तोत्रों की रचना वरुणदेव करते हैं। हम इन स्तोत्रों से मार्गदर्शक प्रभु की प्रार्थना करते हैं।इससे हृदय में सद्बुद्धि प्रगट होती है और सत्य का नवीन मार्ग प्रशस्त होता है। हे देवों! सूर्यदेव का प्रकाशमय मार्ग दिव्यलोक में स्तुतियों के योज्ञ है। हे मनुष्य वह सर्वसाधारण की पहुँच से परे हैं।हे पृथिवी देवी! आप हमारी प्रार्थना का अभिप्राय समझें और हमें ऊर्ध्वमार्ग की ओर ले चलें। इंद्रदेव अपने सैनिकों के साथ संग्राम में हमें विजयी बनाएँ। वे हमारे शत्रुओं को समाप्त कर दें। मित्र,अदिति,सिंधु,पृथिवी और द्युलोक, सभी हमारी स्तुति का अनुमोदन करें। मदनमोहन तरुण

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