Sunday, September 3, 2017

सूर्य

ऋगवेद से 22 सूर्य हे सवितादेव! आप अपनी स्वर्णाभा प्रकट करें। हे सवितादेव ! आप उदित हों। हे स्वर्णिम बाहुवाले देव! आप प्रकट हों। हे व्यापक आभाशाली! आप प्रकट हों। हे सवितादेव! हम आपकी स्तुति करते हैं। आप हमारी समस्त सुप्त शक्तियों को जाग्रत कर दें। अदितिदेवी आप की ही स्तुति करती हैं। वे आप की ही प्रेरणा से परिचालित होती हैं। मित्र, वरुण और अर्यमा भी आप की ही स्तुति करते हैं। जिस प्रकार इन्द्रियों में मन श्रेष्ठ है ,वैसे ही देवों के बीच आप हैं। सूर्यदेव उदित हुए। रात्रि और अंधकार को दो भागों में विभाजित करते हुए स्वर्णपुरुष प्रकट हुए। सारा प्रसुप्त जगत जाग्रत हो गया। जगतचक्षु प्रकट हुए। उन्होंने अदृश्य को दृश्य कर दिया। भूमि पर अग्निदेव चैतन्य होगये। यज्ञ जाग उठे। पक्षियों के पंख फड़फड़ा उठे। पशु किरणों की भाँति दूर- दूर तक फैल गये। सारा जगत कर्ममय हो गया। प्रशांति कल्लोलमय हो गयी। मदनमोहन तरुण

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