Sunday, September 3, 2017

औरत

औरत, महिला और श्रीमती मदनमोहन तरुण 'औरत' एक लैंगिक इकाई है।औरत ,अर्थात मनुष्य नामक प्राणी में पुरुष से भिन्न इकाई।यानी मादा। 'महिला' औरत से आगे की इकाई है। यानी अपेक्षया एक सम्मानित औरत। 'श्रीमती' का अर्थ  वही नहीं है जो पुरुष के संदर्भ में 'श्रीमान' का है।श्रीमती का अर्थ है ,किसी की बीबी या विवाहित औरत। जबकि, श्रीमान का अर्थ है कोई प्रतिष्ठित या ओहदेदार पुरुष। आज भारत की औरतों ने भी 'गृहिणी',अर्थात घर की भिस्ती और बावर्ची के छद्म ओहदे से से अलग हट कर अपनी ताकत से अपनी अलग पहचान स्थापित की है।'यत्रनार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवता' जैसे पुरुष की छललीला से गढ़े जुमले से अलग हट कर। आज औरत का आत्मतेज से दीप्त चेहरा हर जगह दिखाई देता है , उसके लिए 'वर्जित' क्षेत्रों में भी।राजनीति, प्रशासन, पुलिस, जमीन,आसमान और जल की रक्षा में तैनात फौज में भी। वह विख्यात वैज्ञानिक है, चिकित्सक है, विधिवेत्ता है, लेखिका है, जुझारू आंदोलनकर्ता है। पृथ्वी ही नहीं, अन्य ग्रहों पर भी अपनी धाक जमानेवाली जाँवाज औरत है। वर्तमान भारत सरकार के दृष्टिसम्पन्न और बागी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने वसंती टेलकम पावडरदार हवाओं का रुख मोड़ कर उसे तूफान बना दिया है। निर्मला सीतारमण जी को भारतराष्ट्र का रक्षामंत्री बनाया जाना इस दिशा में महाबली का जुझारू फैसला है। इससे भारत ही नहीं, हमारे आसपास के देशों में भी एक अलग किस्म की चुनौतीभरी हुंकार पैदा होगी। लेकिन इसके अलावा औरत का एक कमजोर मोर्चा भी है जहाँ जनाना कराटे का पूरा मुक्का नहीं पहुँचा है , लेकिन लड़ाई जारी है। मुस्लिम औरतों के तलाकपीड़ित मोर्चे पर भारत के उच्चतम न्यायालय के भारी हथौड़े की आवाज ने धर्म की आड़ में औरत की जिंदगी को नारकीय बनानेवालों को उनकी हैसियत से उन्हें पूरी तरह वाकिफ करा दिया है, बावजूद इसके , परम्पराओं की जागीरदारी में पलनेवाले भूत,प्रेतों ने तलाक के खिलाफ बगावती तेवर रखनेवाली औरतों की जिंदगी को अब भी मुश्किल बना रखा है। दूसरी ओर आज भी शिक्षित से शिक्षित शादीशुदा औरत दहेज के नाम पर कदम- कदम पर अपमानित होती है, जलाई जाती है, एसिड से बदरंग बनाई जाती है, बलात्कार कर जहाँ-तहाँ फेंक दी जाती है। औरत को यहाँ भी अपने पक्ष में खड़ा होना होगा। हो सकता है उसे अभी भी पिंजड़े से अपने आसमान को आजाद कराने के लिए एक बड़ी और जुझारू जंगे आजादी लड़नी पड़ेगी, लड़नी ही पड़ेगी और हम जानते हैं कि वह लड़ेगी और जीतेगी।

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