Sunday, September 3, 2017

मरतगण

ऋगवेद से 11 मरुतगण हे मरुतो! ऐसा कोई स्थान नहीं, जो आपके लिए अगम्य हो।आप सर्वत्र विद्यमान हैं। हे जलसम्पन्न मरुतो! आप अंतरिक्ष से सागर को आंदोलित और प्रेरित करते हुए जल बरसाते हैं। हे मरुत! आप वृषभ की भाँति उत्पादन में समर्थ एवं विशिष्ट हैं। दुर्धर्ष वृषभ के समान मरुत अपने प्रचण्ड बल से शत्रुओं का विनाश करते हैं।गर्जन करते हुए वे  बादलों पर अपने   प्रचण्ड प्रहार से वृष्टि करते हैं। हे मरुतो! आप अपने रथ में अरुणिम अथवा रोहित वर्ण के मृगों को नियोजित करें अथवा उससे भी तीव्रधावी एवं समर्थ अश्वों को रथ की धुरी खींचने के लिए नियुक्त करें। हम मरुतों के विविध अन्नों से भरे रथों का आवाहन करते हैं जिनमें रत्नों एवं द्रव्यधारिणी उनकी माता विराजमान हैं। हम मरुतों के रथ में शोभायमान तेजस्वी संघशक्ति का आवाहन करते हैं जिसमें सुजाता और सौभाग्यशालिनी, कल्याणकारिणी देवी महिमापूर्वक विराजमान हैं। हे श्यावाश्य,धूम्रयुक्त अग्निस्तुत वीर मरुद्गण, शशीयशी अर्थात यज्ञ की तरंगित अग्नि अपनी बाँहें फैला कर आपका स्वागत करती है। हम विददस्व के पुत्र तरंत की भी स्तुति करते हैं जो शशीयसी के अर्धांग हैं। हे रात्रिदेवी!आप मरुतदेवों के प्रति समर्पित हमारी स्तुतियाँ उनतक वैसे ही पहुँचाएँ जैसे रथी गंतव्य स्थान तक जाते हैं। मदनमोहन तरुण

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