Sunday, September 3, 2017

उषा

ऋगवेद से 19 उषा देवी उषा ने अपने समस्त प्रकाशद्वार खोल दिये। इसके साथ ही प्रसुप्ति का समापन हो गया।प्राणी मात्र में नवचेतना की प्राणमय झंकार गूँज उठी।पक्षी अपने नीड़ त्याग कर उन्मुक्त आकाश की ओर उड़ चले।संसार कर्मधर्ममय हो गया।मनुष्य अन्न और ऐश्वर्य की प्राप्ति में लग गये।यज्ञाग्नि जाग्रत हो गयी।मंत्राहुतियों से समस्त दिशायें गूँज उठीं। हे तेजस्वी देवी उषा!आपने मनुष्य को क्षात्रतेज से भर कर उन्हें विजयोन्मुख कर दिया। हे देवी! आप देवत्व का संचार करनेवाली देवमाता हैं। आपका मुख अदिति की भाँति सतेज है। आप यज्ञ की ध्वजा के समान हैं। हे विश्ववंद्य उषे! आप हमें भी आलोकित करें। हमें उत्तम शुभ वाणी प्रदान करें। हमें श्रेष्ठ मार्ग से उत्तम लोकों की ओर ले चलें। हे दीप्तिमती उषा! आप हमारे हृदयों को ज्ञान से आलोकित कर दें। हे मनुष्यो!आलस्य त्याग कर उठो।उन्नति के मार्ग पर चलो। उषा ने हमें नूतन ऊर्जा से परिपूरित कर दिया है।मोह रूपी अंधकार से मुक्त होकर, देवी उषा द्वारा प्रशस्त मार्ग पर चलो। हे देवी उषा! आप हमें आरोज्ञवर्धक संजीवनी से उद्दीप्त कर दीजिए। मदनमोहन तरुण

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