Sunday, September 3, 2017

द्यावा-पृथिवी

ऋगवेद से 17 उषा अरुणाभावाले अश्वों से सुशोभित,स्वर्णरथ पर आसीन, मोहिनी उषा का आगमन हो गया। सम्मोहक मुस्कानवाली उषा का लावण्य उसके पारदर्शी वस्त्र के भीतर से दृश्यमान है। लालित्यमयी नवयौवना उषा अपने सुडौल वक्ष का प्रदर्शन करती हुई आगे बढ़ रही है। श्वेतवस्त्रधारिणी गौरवर्णा उषा, सू्र्य की रश्मियों सी शोभायमान हो रही है। नर्तकी की भाँति सुसज्जिता सुंदरी उषा अनेक मुद्राएँ धारण करती, अपने सम्मोहक शरीर का प्रदर्शन करती सबको लुभा रही है।उसका वक्ष खुला है जो पोषण का स्रोत है। अग्नि के समान प्रदीप्त होती उषा ,अंधकार का समापन करती आकाश पर छा गयीं।वे सूर्य की भाँति तेजस्वी हैं। विदुषी नारी की भाँति उषा स्वच्छंद रूप में, अनवरोध समस्त दिशाओं में यात्रा करती हैं। उन्होंने अपना प्रकाशध्वज फहरा दिया है। तीनों लोकों में प्रकाशित होनेवाली उषा अविनश्वर हैं। हे विश्ववंद्य उषे! आप हमें भी आलोकित करें। मदनमोहन तरुण

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