25 KAUTILYA’S ‘ARTHASHAASTRA’
MadanMohan Tarun
When the king is pleased
दर्शने प्रसीदति।वाक्यंप्रतिगृहणाति।
आसनं ददाति।विविक्ते दर्शयते।शमकास्थाने नातिशंकयते।कथायां
रमते।परिगयाप्येष्वपेक्षते।पथ्यमुक्तम सह्यते।स्मयमानो नियुक्तम।हस्तेन
स्पृशति।श्लाघ्येनोपहसति।परोक्षे गुणं ब्रवीति।भक्ष्येषु स्मरति।सहविहारं
याति।व्यसनेभ्यवपद्यते।तदभक्ति पूजयति।गुह्यमाचष्टे।मानवर्धयति।आर्त करोति।हनर्त
हन्ति। इति तुष्ट ग्यानम'।
यदि राजा प्रसन्न हो तो उसका व्यवहार इस
प्रकार होगा;
देखते ही प्रसन्न हो जाना,वचनों को आदर सहित सुनना,आसन देना,एकान्त में
मिलना, आशंका होने पर भी आशंका प्रकट न करना, अपने से असंबंधित बातों को भी सुनने की उत्सुकता प्रकट करना, किसी कठोर बात को भी सहनपूर्वक सुनना,प्रफुल्लित मुख से कार्य करने को कहना, स्पर्श करना,भोजन के समय
बुलाना,घूमने के लिए साथ ले जाना, विपत्ति मे पूर्णरूप से सहायता करना,अपने से प्रेम रखनेवालों का सत्कार करना,उच्चपद -प्रदान द्वारा संतुष्ट करना, कामना पूर्ति करना, आए हुए संकट को दूर करना।
If the king
is pleased he becomes happy at first sight, pays ears respectfully, offers
seat, meets privately, does not show doubt even if has doubt, shows curiosity
even in hearing irrelevant talks, hears even harsh words patiently, asks to do
something with happy gesture, touches, invites at eating time, takes together
when goes for a walk, helps in difficulty, pays respect, offers high post,
pleases, fulfills desires, turns down difficulties.
(From ‘Kautilya’s ‘ARTHASHAASTRA’ by MadanMohan
Tarun)
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