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KAUTILYA’S ‘ARTHASHAASTRA’
MadanMohan Tarun
The beginning
ॐ नमः शुक्रबृहस्पतिभ्याम्।पृथिव्या
लाभे पालने च यावन्त्यर्थशास्त्राणि
पूर्वाचार्यैः प्रस्थापितानि
प्रायशस्तानि संहृत्यकमिदमर्थसास्त्रं कृतम।
ॐ शुक्राचार्य जी और बृहस्पति जी को
नमस्कार। पृथ्वी की उपलब्धि और उपलब्ध होने पर उसके पालन के बारे में पूर्वकलीन
आचार्यों ने जिन अर्थशास्त्रों को रचा है, उनसबों का संग्रह कर मैं अर्थशास्त्र
की रचना कर रहा हूँ ।
I bow my head before Shukraachaarya ji and Brihaspati ji. I am writing
this Arthashastra on the basis of whatever my earlier aacharyas have written
about the ways of earning the land and its ways of safety and growth.
(From ‘Kautilya’s ‘ARTHASHAASTRA’ by MadanMohan
Tarun)
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