Sunday, January 6, 2013


20  KAUTILYA’S   ‘ARTHASHAASTRA’



MadanMohan Tarun

Counseling

कर्मणामन्त्रोपायः पुरुषद्रव्यसम्पत् देशकाल विभागः, वनिपातप्रतिकारः,कार्सिद्दिरिति पंचांगो मंत्रः।
अवाप्तार्थःकालं नातिक्रमयेत्।
न दीर्घकालं मन्त्रयेत।

मंत्रणा के पाँच अंग हैं-
कार्यारम्भ के उपाय
मानव एवं अन्य साधनों के उपयोग से सम्बन्धितविचार
देश-काल विषयक विचार
सम्भावित विघ्नों से प्रतिकार विषयक विचार
कार्यसिद्धि विषयक विचार।
कार्य का एक बार निर्णय हो जाने के बाद उसमें विलम्ब नहीं करना चाहिए।
मंत्रणा पर बहुत समय तक विचार करना नहीं चाहिए।

Counseling has five parts-
The objective to be achieved
The means and ways to achieve the task
Time and place for action
Men and materials to be applied
Ways of protection of the plan against failures
 Once deliberation completed ,it should not be delayed too much.
Deliberation should not continue for longer time’

(From ‘Kautilya’s ‘ARTHASHAASTRA’ by MadanMohan Tarun)

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