Monday, August 22, 2011

Kyaa 'Vande Maatram' Aur ' Bhaarat Maataa Ki Jai' Islaam Virodhi Naaraa Hai ?

क्या ' वन्दे मातरम' और ' भारतमाता की जै' इस्लाम विरोधी नारा है ?

मदनमोहन तरुण

दिल्ली जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने मुसलमानों से कहा है कि वे अन्ना हजारे के आन्दोलन से दूर रहें क्योंकि वहाँ 'वन्दे मातरम’ और ‘भारत माता की जै' के नारे लगाये जाते हैं ,जो इस्लाम विरोधी है।

यदि बुखारी साहब की इस बात को मान लिया जाए तो उर्दू के ऐसे कई महान शायर हैं जिन्हें इस्लाम की परिधि से बाहर निकाल देना होगा , जिन्होंने राम , कृष्ण और शिव आदि पर भक्तिविभोर होकर शायरी की है। बुखारी साहब गाँधी जी के उन मुस्लिम आनुयायियों को क्या जबाब देंगे ,जो यही नारे लगाते हुए आजादी के लिए फना हो गये ?

नजीर उर्दू के महान शायरों में माने जाते हैं।

उन्होंने ब्रह्मानन्द' और 'श्रीकृष्ण की बाललीला' जैसी कविताएँ लिखीं , लेकिन उन्हें किसी ने इस्लाम विरोधी कहने का साहस नहीं किया। जरा कृष्ण पर लिखी उनकी कविता आप भी देखिए-

यारो सुनो ये दधि के लुटैया का बालपन।

औ मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन ।।

मोहन सरूप नृत्य करैया का बालपन। ।

वन वन के ग्वाल गौवें चरैया का बालपन।।

ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।

क्या - क्या कहूँ मैं कृष्ण कन्हैया का बालपन।।

इतना ही नहीं , अपनी इस कविता के अन्त में उन्होंने कहा –

सब मिलके यारों कृष्ण मुरारी की बोलो जै।

गोबिन्द छैल कुंज बिहारी की बोलो जै।।

दधिचोर गोपीनाथ बिहारी की बोलो जै।

तुम भी नजीर कृष्ण मुरारी की बोलो जै।

ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन।।

क्या - क्या कहूँ मैं कृष्ण कन्हैया का बालपन।।

अगर बुखारी साहब नजीर के जमाने में हुए होते, तो न जाने उनका क्या - से - क्या कर दिआ होता। नजीर का जन्म 1740 में हुआ था और निधन 1830 में। होसकता है बुखारी साहब को ये बातें बहुत पुरानी लगती हों। अब जरा 'सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा ' जैसी अमर पंक्तियों के लेखक सर मुहम्मद साहब इकवाल की कुछ पंक्तियाँ देखिए -

सच कह दूँ ऐ बिरहमन ! गर तू बुरा न माने ,

तेरे सनमकदों के बुत हो गये पुराने।

अपनों से बैर रखना तूने बुतों से सीखा,

जंगो-जदल सिखाया वाइज को भी खुदा ने।

तंग आके आखिर हमने दैरो - हरम को छोडा॰,

वाइज का वाज छोडा॰, छोडे॰ तेरे फिसाने।

पत्थर की मूरतों में समझा है तू खुदा है,

खाके वतन का मुझको हर जर्रा देवता है।

आ गैरियत के पर्दे इकबार फिर उठा दें,

बिछुडों॰ को फिर मिला दें ,नक्शे दुई मिटा दें।

सूनी पडी॰ हुई है मुद्दत से दिल की बस्ती,

आ इक नया शिवाला इस देश मे बना दें।

दुनिया के तीरथों से ऊँचा हो अपना तीरथ ,

दामाने - आसमा से उसका कलस मिला दें।

हर सुबह उठ के गायें मन्तर वो मीठे - मीठे,

सारे पुजारियों को मै प्रीत की पिला दें।

शक्ती भी , शान्ती भी भक्तों के गीत में है,

धरती के वासियों की ,मुक्ती पिरीत में है।

मजहब पर टिप्पणी करते हुए आज के महान शायर 'अकबर' ,पूरा नाम सैयद अकबर हुसैन रिजवी ने लिखा -

मजहब को शायरों के न पूछें जनाब शेख,

जिस वक्त जो खयाल है मजहब भी है वही।

जहाँ तक अन्ना हजारे के क्रान्तिकारी आन्दोलन और उसके देशभक्तिपूरित नारों को बुखारी साहब के द्दारा गैर इस्लामी कहे जाने का सवाल है, इसके बारे देश के विवेकसम्पन्न मुसलमानों की राय बुखारी साहब से शायद ही मिलती हो। बुखारी साहब आज की युवापीढी॰ के विचारों के और उन सैंकडों॰ मुसलमानों के विचारों के बेशक प्रतिनिधि नहीं हैं ,जो अन्ना हजारे के आन्दोलन में बढ॰चढ॰ कर हिस्सा ले रहे हैं।

अन्ना हजारे की सबसे सही तस्वीर सर इकवाल की इन पंक्तियों में व्यक्त होती है –

मैं उनकी महफिले इशरत से काँप जाता हूँ ,

जो घर को फूँक के दुनिया में नाम करते हैं।

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