Wednesday, October 2, 2013

Doob : MadanMohan Tarun

दूब
   
मदनमोहन तरुण

दुर्भेद्य चट्टिनों पर,  अनुलंघ्य ऊँचाइयों पर भी

उग कर पसर जाती है दूब।

चरी जाती है पशुओं से बार - बार

काटी, कुचली जाती है लगातार

झुलस जाती है आग की लपटों में

विकट तूफानों में

जब धराशायी हो जाते हैं विराट वृक्ष भी

 बदल देती हैं नदियाँ भी अपनी राह

 तब भी सिर उठाए बनी रहती है दूब 
दूब यात्रा है जीवन की

 उग्र से उदग्र परिवर्तनों में भी


 अप्रतिहत अपराजेय अविराम

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