Sunday, September 3, 2017

द्यावा-पृथिवी

ऋगवेद से 13 द्यवा-पृथिवी कौन-सा पथ देवों तक पहुँचता है? कौन इसे निश्चितरूप से जानता है? हे द्यावा-पृथिवी ! पुरातन ऋषियों ने आपके रहस्यों को जानकर आपकी स्तुति की है। दूरद्रष्टा मनुष्य सूर्य की भाँति द्यावा-पृथिवी को चारो ओर से देखते हैं। द्यावा-पृथिवी एक दूसरे के समाकर्षण में बँधे हैं। वे  अलग-अलग दिखाई देते हैं, परंतु वे जुड़वाँ बहनों की भाँति हैं। उनका कभी क्षय नहीं होता। विराट पुरुष के पाँवों से निर्मित पृथ्वी विभिन्न रूप धारण करती है।देवों के नियम शाश्वत और सर्वोपरि हैं। प्रकृति पूर्णत:अनुशासित है। स्थाई संवत्सर, वसंत,गृष्मादि छह ऋतुओं का आवागमन होता रहता है।सभी सूर्य की किरणों से प्रभावित होते हैं। सूर्य सृजन, पोषण और परिवर्तन के कारण हैं। वे द्यु,अंतरिक्ष और पृथ्वी सबमें व्याप्त हैं। वे अपनी प्राणदा किरणों द्वारा ओषधियों में प्राण और ऊर्जा का संचार करते हैं।सूर्य ही जल,प्राण,पर्जन्य के रूप में पृथ्वी को परितृप्त करते हैं। स्वर्ग और अंतरिक्ष सूक्ष्म हैं।तीन लोकों में पृथ्वी ही प्रत्यक्ष और दृश्य है। तीनो लोक सतत गतिशील हैं। हे मनुष्य! सुंदर रूपवाले दिन और रात्रि निरंतर गतिशील हैं। रात्रि के कृष्णवर्णा होने के कारण दृश्य उसमें आकरविहीन भासित होता है , जबकि दिन के प्रकाश में सबके रूपाकार प्रकट हो जाते हैं। दिन और रात्रि दोनो बहने हैं।एक गोरी है दूसरी काली। वे एक -दूसरे का आदर करती है। एक के आने पर दूसरी अपना आसन खाली कर देती है। गर्जन करते हुए मेघ पृथ्वी में अपना वीर्य-स्थापित कर उसे उर्वरा बनाते हैं जिससे तृप्तिदायक, रसपूर्ण, प्राणपोषक वनस्पतियों का जन्म होता है। जिस प्रकार हितैषी राजा सदैव अपनी प्रजा के साथ रहता है,उसी प्रकार देवेन्द्र पृथ्वी के साथ रहते हैं। मदनमोहन तरुण

No comments:

Post a Comment