Sunday, September 3, 2017
मरुतगण
ऋगवेद 12
मरुतगण
हे तेजस्वी मरुतगण ! जिस प्रकार आपने जलाभिलाषी ऋषि गौतम के लिए जल की धारा बहा दी , उसी प्रकार हमारी कामनाएँ भी पूर्ण करें।
हे जलधारी तरुण, हे महाज्ञानी, हे विपुल ऐश्वर्य के स्वामी, हे कीर्तिमान, हे मुष्टियुद्ध के ज्ञाता, हे अविनाशी, हे क्रांतदर्शी! हमें आपका सतत संरक्षण प्राप्त हो।हम गो, अश्व, रथ, स्वर्ण, रत्न, उत्तम संतान आदि से परिपूर्ण, सुखी, समृद्ध, ऐश्वर्यशाली , प्रभुत्वसंपन्न, बलशाली और अपराजेय हों।
हे मरुतो! जैसे मनुष्यों से भरी नौका नदी के तरंगित जल पर बढ़ती चली जाती है , उसी प्रकार मरुदगण अपनी असाधारण शोभा और गति के कारण दूर से ही दिखाई देने लगते हैं।
हे मरुतो!आप वृष्टि से तेजस्वी सूर्य को भी धूमिल कर देते हैं।
हे सुजन्मा, पृथ्वीपुत्र! आप मानवों के हतैषी हैं।
हे मरुद्गण! आप पंक्तिबद्ध उड़नेवाले पक्षियों की भाँति उच्चतम पर्वत शिखरों से होते हुए आकाश की सीमाओं तक उड़ान भरते हैं।आपके इन अद्भुत कार्यों से देवता और मनुष्य, सभी परिचित हैं।
हे सम्पूर्ण विश्व के नियंता अग्निदेव! आप अपनी तेजस्वी ज्वालाओं से युक्त होकर,अत्यंत शोभायमान, आभामय गणों के साथ , समूह में रहनेवाले, उन्चास पवन के.नाम से विख्यात, पवित्र, तृप्तिकर्ता, एवं आयुवर्धक मरुदगणों के साथ सोमपान कर प्रसन्न हों।
मदनमोहन तरुण
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