Sunday, September 3, 2017
अग्नि
ऋगवेद से 5
अग्नि
हे धूमध्वजधारी अग्नि!हे सात ज्वालाओं से धधकते, दीप्तिमान! हे चिर तरुण,तेजस्वी! हे संग्राम-शत्रु-विजेता अग्नि! हम आपका आवाहन करते हैं।
हे अग्निदेव!आप हमारे यज्ञ में देव-पत्नियों को भी साथ लेकर आएँ।
आप हमारी रक्षा के लिए अग्निपत्नी होत्रा, आदित्यपत्नी भारती, वरणीय वाग्देवी धिषणा को भी साथ लाएँ।
हम सुंदरी रात्रि और उषा देवियों को आमंत्रित करते हैं।
हम अपने कल्याण की कामना से एवं सोमपान के लिए इंद्राणी, वरुणपत्नी वरुणानी और अग्निपत्नी आग्नायी का आवाहन करते हैं।
हम समस्त प्राणियों के आश्रय, सृष्टि के चक्षु, तेजस्वी सूर्यदेव का आवाहन करते हैं।
हे अग्नि! आप मरुदगणों को भी साथ लाएँ।
मरुद्गण, जो पर्वत सदृश मेघों को एक स्थान से सूदूरवर्ती स्थानों पर ले जाते हैं, जो शांत समुद्रों को मथ कर ज्वारिल कर देते हैं, जो सूर्यरश्मियों से परिव्याप्त समुद्र को आपने ओज से द्युतिमान कर देते हैं। हे अग्नि! आप उन्हें भी अपने साथ लाएँ।
उन ऋभुदेवों को भी साथ लाएँ जिन्होंने अपने माता- पिता को फिर से जवान बना दिया। जिन्होंने कुशलतापूर्वक इंद्रदेव के अश्वों की रचना की , जो शब्दोचारण मात्र से वेगवान हो जाते हैं।जिन्होनें अश्विनीकुमारों के लिए सर्वत्रगामी रथ बनाया, जिन्होंने गौवों को अधिक दूध देनेयोग्य बनाया। जिन्होंनें त्वष्टादेवनिर्मित एक चमस को चार प्रकारों में विनियोजित कर दिया।
हमारी स्तुतियों से प्रसन्न ऋभुदेव , सोमयाग करनेवाले प्रत्येक याजक को तीनो कोटि के सप्तरत्न ,अर्थात यज्ञ के तीनो विभागों( हविर्यज्ञ, पाकयज्ञ, तथा सोमयज्ञ) के समस्त फल प्रदान करें।
हे अग्निदेव! आप अतुलनीय कार्यों के कर्ता हैं।आप वह सब करने में समर्थ हैं जो देवता और मनुष्य किसी के लिए भी करना सम्भव नहीँ हैं।आप रक्षक भी हैं और सर्व संहारक भक्षक भी।
हे अग्निदेव! आप परम बलशाली , अजेय और प्रचण्ड सूर्य की भाँति प्रकाशक हैं। आप की ज्वालाएँ रात्रि को भी आलोकित करती हैं।
हमारे कर्म सगठित हों, हमारी सद्बुद्धियाँ संगठित हों।हम अग्रगण्य हों, दानी बनें।
- मदनमोहन तरुण
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