Sunday, September 3, 2017
इन्द्र
ऋगवेद से 2
इन्द्र
हे याचको! आप इन्द्रदेव की प्रसन्नता के लिए श्रैष्ठ, सुखकारी और मर्मस्पर्शी स्तोत्रों का गायन करें।
हे स्तोता! जिस प्रकार धन के इच्छुक समुद्र - मार्ग का अनुसरण करते हुए दूर-दूर की यात्रा करते हैं, उसी प्रकार हविदाता यजमान इन्द्रदेव की ओर उन्मुख होते हैं। जैसे नदियाँ पर्वतों को घेरती हुई आगे बढ़ती हैं, उसी प्रकार आपकी सारगर्भित स्तुतियाँ भी महाबलशाली, यज्ञों के स्वामी तेजस्वी महेन्द्र के चारो ओर गुंजायमान हों, उन्हें श्रद्धापूर्वक आवृत कर लें।
हे मनुष्यो! अपने जाज्वल्यमान वज्र के प्रहार से महाघोषकारी बादलों से जल खींच कर प्यासी धरित्री को सस्यश्यामला बनानेवाले, पृथ्वीलोक और द्युलोक में सामंजस्य के समायोजक,शारीरिक और संकल्पबल से सम्पन्न महातेजस्वी इन्द्रदेव को अपनी स्तुतियाँ समर्पित करें।
हे इन्द्रदेव! आप घी, दही से युक्त, श्रद्धापूर्वक तैयार सोम ग्रहण करें।यह ओजदायी और प्रसन्नतावर्धक है।
हे इन्द्रदेव! आप रक्षणीय की रक्षा करें। हमसे ईर्ष्या करनेवाले, हमारे निंदकों को हमसे दूर रखें।
हमें कोई किसी प्रकार की क्षति न पहुँचाए।
हम बलशाली हों,उत्साही हों, तेजस्वी, यशस्वी हों।
हमारे पास से वृद्धत्व दूर रहे।
हम सदबुद्धि , ज्ञान और धन से सम्पन्न रहें।
निराशा और आलस्य हमसे दूर रहें।
हे अटल,प्रचण्ड,अविजेय इन्द्र ! हमारे शत्रु कभी हम पर हाबी न हों।
हे इन्द्र! हमारे स्तोत्र - गायन आप तक पहुँचें और आपको प्रसन्नता प्रदान करें।
- मदनमोहन तरुण
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