Sunday, September 3, 2017
अग्नि
ऋगवेद से 7
अग्नि
हे अग्निदेव!आपके रथ में श्याम,लाल तथा शुक्ल वर्ण के अश्व जुते हैं।आप अपने उसी दिव्य रथ से सर्वत्र यात्रा करते हैं।
आप अपनी असंख्य ज्वालाओं से वनों को प्रकाशित करते हैं। यात्रामार्ग में आप निकटस्थ और दूरस्थ पर्वत शिखरों पर विश्राम करते हुए, गर्जनपूर्वक शत्रुओं का संहार करते हुए पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं।आप जिधर से गुजरते हैं, उधर रास्ते बन जाते हैं। आप हमें उत्तम नेतृत्व प्रदान करते हुए श्रेष्ठ मार्गों पर ले जाते हैं।
हे परम तेजस्वीअग्निदेव! कोई आपकी अवहेलना नहीं कर सकता।
जैसे प्यासा व्यक्ति पानी पीता है, वैसे ही आपकी ज्वालाएँ वनों का पान करती हैं और आपके रथ में जुते अश्वों की भाँति शब्द करती हुई आगे बढ़ती हैं।
यज्ञ के नायक अग्निदेव में सात रश्मियाँ परिव्याप्त हैं।आठवीं रश्मि वे स्वयं हैं।
जिस प्रकार धुरी के चारो ओर चक्र घूमते हैं , उसी प्रकार अग्निदेव के चारों ओर हमारी स्तुतियाँ घूमती हैं।
जो मनुष्य अग्निदेव के इस सनातन स्वरूप को जानता हैं , वह वृक्ष की भाँति ऊँचाइयों की ओर वृद्धिमान होता हुआ उसकी शाखाओं की भाँति चारों ओर से प्रशस्त होता जाता है।
जिस प्रकार जल की प्रखर धारा अपने सामने आनेवाले विशाल चट्टानों को भी पार कर जाती हैं, उसी प्रकार हे अग्निदेव!आपके संरक्षण में हम भी प्रमादी से प्रमादी,महाबलशाली शत्रुओं के समूह को भी विजेता की भाँति पार कर जाएँ। देवताओं और मनुष्यों के शत्रु कभी हम पर स्वामित्व प्राप्त न करें।
हम तेजस्वी हों, विजेता हों, ऐश्वर्यशाली हों।
मदनमोहन तरुण
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