Sunday, September 3, 2017
द्यावा-पृथिवी
ऋगवेद से 15
द्यावा -पृथिवी
पिछले यज्ञ के सोम-निष्पादन-काल में हमने स्तोत्रों का पाठ किया था , फिर भी व्यथाओं, चिंताओं ने हमें चारों ओर से इस प्रकार घेर लिया है , जैसे पिपासित हिरणों को भेड़िये चबा - चबा कर खाते हैं। हे द्यावा! हे पृथिवी! आप हमारी व्यथाओं पर ध्यान देते हुए उसका निवारण करें।
दो सौतों की तरह कामनाएँ हमें सता रही हैं। जैसे चूहे माड़ी लगे धागों को चबा जाते हैं वैसे ही मन में व्याप्त दुश्चिताएँ हमें सता रही हैं। हे द्यावा! हे पृथिवी! आप हमारी व्यथाओं पर ध्यान दें। आप उनका निवारण करें।
सूर्य की सात किरणें जहाँ तक व्याप्त हैं, हमारे नाभिक्षेत्र, प्राणतत्व, का भी वहाँ तक प्रसार है।जल के पुत्र त्रित भी यह जानते हैं। हमें सब से मैत्रीभाव प्राप्त हो। हे द्यावा!हे पृथिवी! आप हमारी प्रार्थनाओं पर ध्यान दें।आप हमें दुश्चिंताओं से मुक्त करें।
अग्नि, सूर्य , वायु , चंद्रमा और विद्युत पाँच शक्तिशाली देव जो द्युलोक में निवास करते हैं , वे हम पर कामनाओं की वृष्टि करते हैं। आवाहन करने पर वे हमारे यज्ञस्थल पर पधारते हैं और तृप्त हो कर अपने स्थान पर लौट जाते हैं। मन के साथ इंद्रियाँ भी उपासना में तल्लीन हो जाती हैं। हे द्यावा!हे पृथिवी! आप हमारी प्रार्थना का अभिप्राय समझें।
मदनमोहन तरुण
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