Sunday, September 3, 2017

उषा

ऋगवेद से 21 उषा हे द्युलोकपुत्री उषा! हे नवतरुणी,सम्मोहिनी उषा! हे असंकुचित उषा! आपने अपने पर्वतों से सुदृढ़ किले के द्वार खोल दिये हैं।आपने संसार को अंधबंधनों से मुक्त कर दिया है। हे कर्म, धर्म संचालिका उषा! हे सूर्य, अग्नि और यज्ञ संचालिका उषा! हे उच्चतम स्थानों पर विराजमान देवी! अपने दीप्तिमान रथ से हमारे यज्ञ में पधारें। हे देवी उषा! हे देव-चक्षु-ज्योति! हे श्वेतवस्त्रा, स्वर्णवर्णा! हे किरणों की जननी ! जैसे - जैसे आपके प्रकाश में अभिवर्धन हो, वैसे - वैसे हम भी सतत वर्धमान हों। हे देवी! आपके प्रकाश में हमारे सामने देवताओं के आने-जाने का मार्ग आभासित हो गया है। हे देवी! प्राचीन काल के अंगिरागण एवं क्रांतद्रष्टा कवियों ने अपने द्वारा सर्जित मंत्रों को अपनी साधना से सिद्ध कर गुप्त तेज प्राप्त किया था। उन्होंने ही अपने मंत्रों के द्वारा तेजस्वी उषा को प्राप्त किया था। आज वही श्रेष्ठ विचारोंवाले संगठित हुए हैं। वे सदैव दैवी मर्यादा का पालन करते हैं। आपस में हिंसा या द्वेष नहीं करते। हे देवी उषा!  हम कर्मठ हों, सुविचार सम्पन्न हों, तेजस्वी हों, ऐश्वर्यवान और अपराजेय हों। मदनमोहन तरुण

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