Sunday, September 3, 2017
अग्नि
ऋगवेद से 8
अग्नि
हे अग्निदेव! हम श्रेष्ठ विचारकों द्वारा रचित मंत्रों द्वारा आपका आवाहन करते हैं।
हे अग्निदेव! प्रदीप्त उच्चगामी किरणों से शोभायमान आप यज्ञ की ध्वजा हैं।
हे पूजनीय अग्निदेव!आप यज्ञकार्यों में, शत्रुओं के बीच रणभूमि में गर्जन करते हुए हमारा नेत्रृत्व करते हैं।
मनु के निमित्त मातरिश्वा वायु ने सुदूर स्थान पर आपको प्रदीप्त किया।
जिस प्रकार लम्बे समय की यात्रा पर जानेवाला मनुष्य अपना घर बन्द कर उसकी चावी रक्षार्थ अपने मित्र को सौंप जाता है, उसी प्रकार देवता अपनी अनुपस्थिति में पृथ्वी के प्राणियों की रक्षा के लिए आपको हमसबों के बीच स्थापित कर गये हैं।
हे वसुओ! हे आदित्यो! हे विश्वेदेवो! यह यज्ञाग्नि देवद्वार है, देवताओं से सम्पर्क के लिए इनका सहारा लें। इस देवमुख को घी से सतत सिंचित रखें।इसे कभी जीर्ण न होने दें।
वस्त्र बुनते समय निकलनेवाली ध्वनि हमें उत्तम कार्यों में सतत रत रहने और अभिवृद्धि की प्रेरणा देती है।
उषादेवी और देवी नक्ता की उपस्थिति हमारे यज्ञस्थल को सौंदर्य प्रदान करती है।ये प्रेरणादायी देवियाँ काल-विभागरूपी फैले ऊन के धागे बुनती हुई, मानवजीवन रूपी वस्त्र को पूर्णता प्रदान करती हैं।
अनेक श्रेष्ठ गुणों से विभूषित देवी भारती, देवी इला,देवी सरस्वती हमारे यज्ञस्थल पर विराजमान रह कर हमारी रक्षा करें।
हे यज्ञकुंड में सतत प्रज्वलित दिव्य, दीप्तिमान अग्निदेव! आप हमें अपने ही समान सुवर्णाभायुक्त कांति ,तेजस्विता और प्रखरता प्रदान करें।
मदनमोहन तरुण
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