जिन्दगी छोटी नहीं होती
मदनमोहन तरुण
जिन्दगी छोटी नहीं होती
पर , प्रतीक्षाकी
घडी॰
इसमें नहीं होती।
सूर्य हों , हों
चन्द्र,
सब हैं यात्रा पर,
कभी भीतर ,कभी बाहर,
जिन्दगी इस तरह चलती
कुछ नया हर रोज रचती
यहाँ सोना ,जागना, चलना
सभी कुछ है जरूरी।
हार का भी स्वाद है
और जीत का भी स्वाद,
सोच मत तू ,खेल सारे
खेल
हो कहीं कोई भी मजबूरी।
जिन्दगी जैसी है वैसी कर ग्रहण,
हो अगर ललकार तो कर युद्ध,
हो अगर सब ठीक, कर विश्राम।
आम केवल पके ही खाये नहीं जाते,
आम कच्चा का भी होता एक अपना स्वाद।
मिर्च का भी है मजा, तीखा जरा, कड॰वा जरा,
चूस आईसक्रीम का भी ले मजा।
चख , परख ,चल, नदी, नाले सड॰क ,ट्रेन, जहाज,
पाँव से चल, बैलगाडी
काभी ले ले स्वाद।
चल धरा पर, चल गगन पर,
पंख के तू रंग सारे खोल,
तोल मत हर चीज कस-कस कर तराजू में,
नाच -गा ले ,आज हल्ला
बोल।
जिन्दगी का है यहाँ मेला लगा,
रूप -रंगों का यहाँ खेला सजा,
भीड॰,ठेलमठेल
है,
फिर भी सभी कुछ खेल है,
खडा॰ मत रह तू
किनारे,
घिरनियों पर घूम ले ,
लेले मजा।
जिन्दगी है जागरण का गान,
मौत है विश्रान्ति का स्थान।
जिन्दगी छोटी नहीं होती,
बडा है कैनवास इसका,
हर किसी को प्राप्त है स्थान उसका।
चढ॰ शिखर पर ,उड॰ गगन
पर
या धरा पर,
नहीं कोई रोक, सकता नहीं
कोई टोक,
लिख दे चट्टानों पे अपना नाम है
गाड॰ दे तू शिखर पर झंडा।
No comments:
Post a Comment