है खडा॰ युगपुरुष सम्मुख
मदनमोहन तरुण
प्यार खुल कर करो
भोजन करो अपने स्वाद से
किन्तु आँखें लक्ष्य पर हों
चरण नव - अभियान पर
जेब में पैसा रहे
घर में रहे सम्पन्नता
जो गया है बीत
उससे भी तनिक लो सीख
और जो चल रहा
उसको प्राप्त कर निर्भीक
विनय हो, हो सादगी
पर रह न हीन दरिद्र
बाप का पैसा न खा
दूजे के सम्मुख मुँह न बा
कर्म कर और अर्न कर
है गर्व इसमें धीर
देख जो सम्पन्नतम हैं राष्ट्र दुनिया के
किस तरह जीते हैं सारे ठाठ दुनिया के
कम न रह , किस्सा न गढ॰
चढ॰ शिखर बाधा चीर
बनो विकसित
खुलो, खोलो रंग सारे
कब तलक तू रहेगा
दुम - सा बना पिछडा॰
जीत की कर बात
मत रो हार का दुखडा॰।
बन न दूजे की लँगोटी
जी न जीवन चीकटों का
कभी कुत्ते - सा न जी तू
न गा तू चारण सरीखा
तनी गर्दन ,शीर्ष उन्नत
बन विजेता वीर
यह नहीं युग हारने का
यह नहीं युग भागने का
लड॰ समर यह
हो कठिन जितना भी दुष्कर
चढ॰ निडर पर्वत शिखर पर
गाड॰ दे झंडा न कर देरी
जो तुम्हारे पाँव खींचे
पीठ पीछे चोंच मारे
जो घुसे घर में तुम्हारे
बजाए अपने नगाडे॰
बन न कोमल, बन न भोला
पाँव की ही ठोकरों से दे उसे तू सीख
है खडा॰ युगपुरुष
सम्मुख
भीमकाय विराट
यह महत उद्योगमय
विज्ञानमय विभ्राट
आँख इसकी देखती
सम्भावना के लोक
कान अश्रुतपूर्व के
बन रहे इसके स्रोत
हाथ इसके कर्मकाण्ड प्रधान
पाँव इसके नयी यात्रा
राष्ट्र सारे गाँव
महत्वाकांक्षी महायात्री विजेता
नया मानवलोक यह ब्रह्माणड
यह नया संकल्प नूतन नागरिकता
सर्वगामी, हर दिशा ,स्थान में परिव्याप्त
जगा नूतन चाह , नूतन राह, सागर थाह
यह नया है रूप
नूतन मानसिकता
खोल अपने पंख ,उड॰ ,आकाश पर छा जा
चल पडा॰ संकल्प बन यदि
कौन रोकेगा तुम्हारी राह !
जाति से ऊपर उठो
उठ वर्ण से ऊपर
सम्प्रदायों , धर्म,
सारे लीक से ऊपर
यह नये नर-नारियों का लोक
यह समय का नया चेहरा
यह मनुज का नया परिचय
हो सकल संकीर्णता से मुक्त
देर मत कर साथ चल
नूतन प्रतिश्रुति युक्त
जीत की खुशियाँ मना ले
थिरक ले सब ताल पे गा ले
जिन्दगी के दिन न गिन
मत कर प्रतीक्षा कल सुबह की
इसी पल को पूर्णता के साथ तू जी ले
हार से घबरा न पल भर
जीत का ही है कदम यह
गिर गया तो उठ, सम्हल चल
खडा॰ मत रह ,गँवा मत पल
हो जरूरी तो बदल ले राह
आईने के सामने के आदमी की करो इज्जत
यही है भगवान तेरा, यही पलनहार तेरा
यही है सबसे बडा॰ जिसके सहारे तू खडा॰
है
भूल मत इसको कभी
कर रोज इसे प्रणाम।
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