महायोद्धा
मदनमोहन तरुण
मेरे गाँव में एकाध ऐसे लोग भी थे जो लोटा - डोरी और कमर में कुछ पैसे बाँधे
घर से निकल पड॰ते और साल - दो -साल बाद चारो धामों की यात्रा पूरी कर
लौटते। कुछ
कभी नहीं भी लौटे। उन में से कई यात्रा पर जाने से पहले अपने
अंतिम संस्कारों की पूरी
विधियाँ सम्पन्न कर लिया करते थे।
सोचता हूँ , आदमी कितना बडा॰ योद्धा है। वह कभी,कहीं भी, किसी भी हालत में
आजतक न तो रुका है ,न तो हार माना है,
उसकी यात्रा सतत
जारी रहती है।
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