सुना तुमने
मदनमोहन तरुण
सुना तुमने !
सुना ?
आज मैं अपनी सारी प्रार्थनाएँ
वापिस ले रहा हूँ …
वर्षों …
वर्षों मैंने घंटियाँ बजाईं
तेरी प्रशंसा के श्लोक पढे॰
कभी तुम्हारे चार हाथों
या हजार हाथों के गीत गढे॰
सर्वव्यापी और न जाने क्या - क्या कहा तुम्हें
तेरे अंग - अंग की तरीफ की
तेरी देवियों की सुन्दरता का बखान किया
ताकि तुम सुन सको हमारी पुकार
मगर ठीक तेरी आँखों के सामने
समय ने मुझे कितनी बार लहू -लुहान कर दिया
मगर तू नहीं आया , तो नहीं आया
न कोई आवाज ही दी
मुझे छोड॰ दिया
भूखे अस्त्रों के बीच घिरा …
अकेला …
निहत्था …
जब तू सुनता ही नहीं
तब मैं तुझे क्यों पुकारूँ ?
क्यों बजाऊँ घंटियाँ ?
क्यों पढूँ मंत्र तेरी खुशामद के ?
आज मैं अपनी सारी प्रार्थनाएँ
वापिस ले रहा हूँ …
सुना ?
सुना तुमने !
आज मैं अपनी सारी प्रार्थनाएँ
वापिस ले रहा हूँ …
जा … जा
तू सोता रह अपने शयनागार में
दबवाता रह लक्ष्मी से अपने पाँव
सुनता रह ब्रह्मा की ठकुरसुहातियाँ
मगर नहीं … अब
नहीं …
अब मैं तुम्हारी प्रार्थना नहीं करूँगा
जब तू सुनता ही नहीं
तब मैं तुझे क्यों पुकारूँ ?
क्यों बजाऊं घंटियाँ ?
क्यों पढूँ मंत्र तेरी खुशामद के ?
आज मैं अपनी सारी प्रार्थनाएँ
वापिस ले रहा हूँ …
कितनी उम्मीदों से मैंने तुम्हे कितनी बार पुकारा
दर्द से चीखा ,चिल्लाया
समय ने मेरा तमाशा बना दिया
मगर तू नहीं आया ,तो नहीं आया …
न कभी बतलाया कि तुमने सुना,
जब मैंने तुम्हें
अथाह पीडा॰ से आहत, अपमानित, अवमानित होकर
तुम्हें पुकारा …
तब भी तू नहीं आया तो नहीं आया …
जब तू सुनता ही नहीं
तब मैं तुझे क्यों पुकारूँ ?
क्यों बजाऊँ घंटियाँ ?
क्यों पढूँ मंत्र ,
तेरी खुशामद के ?
आज मैं अपनी सारी प्रार्थनाएँ
वापिस ले रहा हूँ …
सुना ?
सुना तुमने !
आज मैं अपनी सारी प्रार्थनाएँ
वापिस ले रहा हूँ …
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